Saturday, November 24, 2007

बिटिया

दूर बहुत दूर भागते रहे हैं
लोगों से, बहुत सारे लोगों से
इंसानों से, उलझन से, आशाओं से
अकेले रहने की जिद की जिद कर ली है
साहस जवाब दे देता है.
दुखों से बचने के लिए,
तमाम सुखों को लात मार दी है
बस एक सूनी सी, एक सी, अकेली सी
जिंदगी कर ली है
जो हमें चला रही है
खुश भी रह लेते हैं, सबके बिना, ख़ुद के साथ
कभी कभी ख़ुद के बिना भी
आंखों से दीखने वाले, कानों से सुनने वाले
अनुभवों के साथ
जी लेते हैं.
उम्मीदें बस ख़ुद से लगा रखी हैं,
दूसरों से बस जवाब सुनते हैं, अक्सर ना में
यकीन हो चला है-
दूसरों में यकीन रखना फिजूल है,
निरर्थक है, दुखदायी है।

फ़िर
एक बच्ची कहीं भी चलते, फिरते, घूमते, टहलते
दिख जाती है,
मन में एक पुलक, एक उम्मीद, एक यकीन
जनम लेता है
लोगों के लिए, दूसरों के लिए
लगता है, कुछ तो माने हैं
रिश्तों के, समाज के
आश्चर्य होता है, एक बच्ची इतने प्रेम
इतने स्नेह, इतने वास्त्सल्य, इतने विश्वास
को जगा सकती है !
सब दुखों को एक क्षण में,
सब असफलताओं को एक पल में,
सब धोखों को उसी समय,
तुरंत झेलने को मान जाता है मन
उस प्यारी सी बच्ची के लिए,
जिसकी उंगलियों को उंगलियों में उलझाकर
तमाम मुश्किलात से, सारी अनहोनियों से
निकालते चलने के लिए
तुरंत मचल जाता है मन.
जिसको गोद में उठाकर
दीवार के ऊपर बिछी लताओं से फूल तोड़ने,
हाथों में बाँध कर झूले झुलाने,
और झूलते झूलते उसकी आंखों में चमकती
खुशी को अपनी आंखों में देखने,
सुबह सुबह उसकी प्यारी पुकार पर जगने,
के लिए-
अस्तित्व तड़प उठ पड़ता है,
एक बिटिया को.
मेरा अहम्
मिट्टी मिट्टी होकर पानी होता है,
सारे झूठ, सारे डर, सारे घमंड
पीछे छोड़ने को,
अंजुमन में एक बिटिया खिलाने को.

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