Saturday, November 10, 2007

जान निसार अख्तर..

अश-आर मेरे यूं तो ज़माने के लिए हैं
कुछ शेर फ़क़त उनको सुनाने के लिए हैं

अब यह भी ठीक नहीं कि हर दर्द मिटा दें
कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं

आंखों में जो भर लोगे तो काँटों से चुभेगें
यह ख्वाब तो पलकों पर सजाने के लिए हैं

देखूं तेरे हाथ तो लगता है तेरे हाथ
मंदिर में फ़क़त दीप जलाने के लिए हैं

यह इल्म का सौदा यह रिसाले यह किताबें
इक शख्स कि यादों को भुलाने के लिए हैं!

No comments: