Thursday, November 1, 2007

गुलज़ार की नज़्म और नसरुद्दीन शाह की आवाज....

पूरे का पूरा आकाश घुमा कर बाजी देखी मैंने
खाली घर में सूरज रख कर तुमने शायद सोचा था
मेरे सब मोहरे पिट जायेगे
मैंने एक चिराग जला कर अपना रास्ता खोल लिया

तुमने एक समुन्दर हाथ में लेकर मुझ पर ठेल दिया
मैंने नूह की कश्ती उसके ऊपर रख दी
काल चला तुमने, और मेरी जानिब देखा
मैंने काल को तोड़ कर लम्हा-लम्हा जीना सीख लिया

मेरी खुदी को तुमने चंद चमत्कारों से मारना चाहा
मेरे एक प्यादे ने तेरा चाँद का मोहरा मार लिया
मौत की शह दे कर तुमने सोचा था अब तो मात हुई,
मैंने जिस्म का खोल उतार कर सौंप दिया और रूह बचा ली

पूरे का पूरा आकाश घुमा कर अब तुम देखो बाजी....

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