Friday, December 19, 2008

अधूरी कवितायें..

कहीं नहीं जा रही है वो
एक जगह जैसे रुक गई है
जम गई है ख्यालों की बर्फ में
कुछ पुरानी, कुछ नई मिली बर्फ
कुछ साफ़, सफ़ेद, ताज़ा बर्फ,
चढ़ गई है कई परतों की तरह
इन जमी बर्फ की परतों में
एक एक साँस बटोरती
मेरे अन्दर मेरी जिंदगी
बाहर निकलने की पीड़ा में
और अन्दर उतरती मेरी जिन्दगी
दरारों से आती रौशनी
जो खुली हुई है थोडी थोडी दूर पर
गहराईयों में, जितना नीचे
उतरो , उतनी छोटी दरार से
आती उतनी धुंधली रौशनी...

No comments: