Friday, December 19, 2008

जल्दी ही पूरी करनी है, लेकिन कब..

बाकी क्या बचा
एक हाड़-मांस का पुतला
एक हवा अन्दर बाहर पम्प करने वाला ढांचा
या एक दिमाग, एक कंप्यूटर
जिसके दो हिस्से
एक तार्किक, एक रोमांटिक
एक विशुद्ध वैज्ञानिक, एक विक्षिप्त संवेदनशील
दोनों के सहारे घिसट रही है ये लाश
दोनों के सहारे खेल रही है ये जिंदगी
कभी इस पलड़े, कभी उस पलड़े
संभल रही है जिंदगी
दोनों में तालमेल बिठाते बिठाते
चेतना अवचेतन में जा जा कर
लौटती है वापस

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