Monday, May 12, 2008

उजियारे

हर तरफ़ अँधेरा ही अँधेरा है.
कुछ साल पहले
उजाले की खोज में निकला,
आज अंधेरों में खो चुका
मेरा वजूद,
जब उजाले की एक किरण से मिला था
कुछ साल पहले,
घर से निकला था
उजाले की आस में
मेरा ईमान,
खाली हाथों में उसी किरण का एक सिरा
पकड़ कर निकल पड़ा था
आखिरा कभी आया ही नहीं हाथ में,
घूमते फिर रहे हैं दर-बदर
अंधेरों को साथ लिए
मेरे अंदेशे,
चारों तरफ़ से अँधेरा ही अँधेरा
बटोरते बटोरते
स्याह, कालिख हो गए हैं
राहों से, मंजिलों से,
मायूसी और खलिश भरते भरते
जोड़ते जोड़ते,
जो मिला उसे खरीदते खरीदते
बिक गए हैं
मेरे उसूल,
उजाले की किरण को
मुट्ठी में बांधे बांधे,
रोशन हैं अब तक
उसी की बदौलत
उसी की खातिर,
घोर अंधियारे के बावजूद
जो घोलता गया कई उजालों को,
जो निगलता गया कई रोशनियों को,
जो मिले थे रास्ते में,
हमसफ़र बने थे
उसी किरण की दुआ के सहारे
कायम हैं अब तक
मेरे दोस्त,
खिसकते चलते है
इन हाथों से भी अब,
कब के बंद बंद वो नूर
घुटे, सिमटे, और संकुचित
बिन साँसों के
उजाले से दूर,
उजाले से मरहूम,
अंधेरों में कैसे साँस ले पाते,
खोलने की हिम्मत ही न कर पाये,
बोलने की ताकत ही न जुटा पाये
बस, किसी तरह जिंदा है,
किसी तरह महफूज़ हैं
मेरे पिंजरे में,
अंधियारे में
मेरे उजाले,
मेरे विश्वास...

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