अगर कोई नीचे लिखी कविता को पढे तो यह भी सोच सकता है कि क्या अव्वल दर्जे की बकवास लिख रखी है। लेकिन अगर आप ने किसी को चाहा है तो आपको पता हो या ना हो आप इन हालातों से जरूर गुजरे होंगे। कवि ने इतना सूक्ष्म विवेचन कर रखा है छोटी छोटी बातों का, शायद महसूस करने वाले के भी पकड़ में ना आने पाए। लेकिन कविता इसी को कहते हैं शायद।
और जब आपको यह पता चलता है, कि आपने जैसा पहले कभी, किसी के लिए महसूस किया था, वो ऐसे ही फालतू का रुमानीपन नहीं था, बल्कि उसके भी माने थे। अगर किसी और ने भी, वैसा ही कुछ, किसी और के लिए, कभी और महसूस किया है, तो यह बकवास तो नहीं हो सकती है। हाँ, अगर हम इंसानी जज्बातों को कि बकवास मान लें तो बात अलग है।
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