क्या ख़ता हुई है, यह भी नहीं बताते हैं,
बिना बात किये बतियाते हैं सरकार !
कदमों तक को साथ चलाने में रंज हो उन्हें,
बगल में हो कर भी, अलग चलते हैं सरकार !
तुम्हें कोसने के लिए खुद को कोसते हैं हम,
और वहाँ बेरुखी से खुश होते हैं सरकार !
अपने अरमानों को इतना ज़ब्त किया है हमने,
क्यों अश्कों को ज़हर बनाते हैं सरकार !
टूटे हुए दिल से रूखे लबों पर हंसी लाते हैं,
क्यों हंसते को रुलाते, फिर हंसाते हैं सरकार !
हमें भी रंज हो जिस बात, पर तड़पे फिर रात भर
खता करवा के गिला क्यों करवाते हैं सरकार !
आशियाने में मेरे तनहा सी उदासी है,
क्यों नहीं इसे अपनी सादगी से सजाते हैं सरकार!!
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment